Monday, December 7, 2009

तुमोर Cured

सैदा बेगम,उम्र-25 वर्ष, मेरे एक पुराने रोगी, जिनकी किड़नी रोग मेरे द्वारा ठीक हुई थी, उनके द्वारा लायी गयी । रोगिनी के पति ने बताया कि 2 दिनों से भंयकर पेट दर्द है, हम लोग अभी अस्पताल में भर्ती कराकर ईलाज करा रहे हैं, लेकिन एक पैसे का भी पफायदा नहीं है, 2 दिन में पचासों इनजेक्सन और पानी लगातार चल रहा है, मगर कोई पफायदा ही नहीं हो रहा है, अब थक-हार कर हमलोग दिल्ली, गंगा राम हाॅस्पीटल जा रहे हैं कि अली भाई मिलने के लिए आये और तब इन्होंने सारा वाक्या जाना तो इन्होंने कहा कि आप लोग मेरे साथ, मेरे डाक्टर साहब के पास चलिये, उम्मीद है दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा, तो हम लोग आपके पास आये हैं। मैंने पुछा कि और क्या-क्या तकलीपफ है? अभी और पहले से, क्या बीमारी थी ? रोगी के पति ने बताया कि दो दिन पहले अचानक पेट दर्द शुरू हुआ, चेहरा लाल हो कर पफूल गया, और मुँह में इतना सूजन हो गया कि एक चम्मच पानी भी नहीं, निगला जा रहा है, और बहुत मुश्किल से बोल पा रही थी, साथ ही साथ मिचली और कै हो रहा है, सिर दर्द के साथ चक्कर, जब भी चलने का प्रयास करती है । नींद बिल्कुल नहीं आ रही है, हम लोग दो दिन से जगे हुए है, शायद उल्टी के कारण, नहीं सो रही है या दर्द के कारण हमलोग नहीं समझ पा रहे हैं और ना डाक्टर ही कुछ कह रहे है, बस, हर घंटा पर दवा का नया पुर्जा पकड़ा दे रहे है कि अब यह दवा लाइये। इस तकलीपफ के पहले इनको ल्यूकोरिया करीब-10 वर्षों से है, जिसके साथ, गुप्तांग में जबरदस्त खुजली होती है। डाक्टर लोगों ने इसे न्तपदंतल ज्तंबज प्दमिबजपवद बताया है। पिछले 3 सालों से बार-बार इनका पेट खराब हो जा रहा है, एक दिन मे 50-60 पैखाना हो जाता है । एक और बीमारी जो इन्हें 5 वर्षों से है, वो हैं, पुरे शरीर का सूजना, बहुत ईलाज चल रहा है। डाक्टर साहब हमलोग इनको लेकर बहुत परेशान हुए, यह देखिए, आज अल्ट्रासाउंड हुआ है, इसमें एक नयी बीमारी और सामने आई है, मैंने अल्ट्रासाउंड देखा इसके अनुसार रोगिणी के स्मजि व्अमतल में बवउचसमग स्ज्.ज्.वए डंेेए उपसक ।ेबपजमे और त्पहीज थ्वससपबनसंत बलेज दिखाई दिया जाँच रिपोर्ट की दिनांक थी 24 जनवरी 07 रोगिणी की बहनों में उच्च रक्तचाप और हृदय रोग का इतिहास मौजूद था । इतना सबकुछ सुनने के बाद मैंने रोगिणी के पति से बोला कि मुझे रोगी को देखना होगा, सिपर्फ आपकी जानकारी पर दवा नहीं च्तमेबतपइम कर सकता हूँ । पति महोदय ने मुझे स्वंय चलकर देखने का आग्रह करने लगे क्योंकि रोगिणी लाने वाली स्थिति में नहीं थी, जब मैं हाॅस्पीटल पहुँचा तो देखा कि रोगिणी बिछावन पर आँख मुंदे लेटी हुई है, परन्तु चेहरे पर दर्द नजर आ रहा था । हमलोगों के पदचाप सुनकर रोगिणी ने आँखें खोली और सवालिया नजरों से मेरे और अपने पति के तरपफ देखने लगी । रोगी को अपनी तरपफ देखते पाकर, पति बोले-ये डाक्टर साहब, अब आपके दर्द का ईलाज करेंगे । इतना सुनना था कि वह झल्ला गयी और चीख कर बोली-चले जाओ, मेरे कमरे से, यहाँ कौन बीमार है, आप लोग जाइये । मैं बाहर नहीं निकला, वही खड़ा रह कर रोगी की तरपफ देखते रहा, उसके पति एवं अन्य लोग रोगिणी को समझने लगे । बड़ी मुश्किल से वो मानी । मैंने रोगिणी से प्रश्न किया- क्यों तकलीपफ है ? रोगिणी ने जवाब दिया- यह दर्द ! और क्या। यह इतना भयंकर रूप ले लिया है, लगता है जैसे बच्च जनने का दर्द भी कम है । ऐसा लगता है कि पेट में लोहे का गेंद, इध्र से उध्र मार रहा है । अब मैं पागल हो जाऊँगी, अगर यह दर्द तुरन्त ठीक नहीं हुआ तो मैंने दुसरा प्रश्न किया-इतना भंयकर दर्द कैसे सह पाती है, जवाब मिला-बस रात-रात भर चिल्लाते रहती हूँ । जब तक दर्द रहता है, उस समय मैं किसी को अपने सामने देखना नहीं चाहती हूँ, यहाँ तक की मेरे परिवार के सदस्य जब पास में आते है, मेरी सहायता करने, तब मैं बहुत उग्र हो जाती हूँ और मन करता है, इन सबका मुँह नोच लूँ । इस समय मैं एक ही बात सोचती हूँ कि यह दर्द क्यों नहीं जा रहा है । मैं यह दर्द नहीं बर्दास्त कर सकती हूँ । कृप्या, कुछ कीजिए, मैं इस दर्द से जल्दी से जल्दी निजात पाना चाहती हूँ । मैंने रोगिणी को आश्वासन दिया कि आप अपनी उम्मीद से पहले ठीक हो जायेगी । इतना कह कर मैं हाॅस्पीटल से वापस चला आया होमियोपैथ-सहगल वर्जन पर इस केस का ।दंसलेपे किया निम्न रूबरिक सामने आयेंः-त्नइतपबे रू.1ण् डवतवेम पदजमततनचजपवदएतिवउ2ण् प्ततजंइपसपजल ैमदक कवबजवते ीवउम3ण् ब्ंचतपबपवनेदमेे.त्मरमबजपदह जीम जीपदहेण्4ण् म्गंहहमतंजपदह .ेलउचजवउे ीमत5ण् ।देूमत.।अमतजपवद जव6ण् ैीतपबापदह.चंपद ूपजी7ण् ।इनेपअम8ण् प्उचमंजपमदबम चंपद तिवउ9ण् प्उचंजपमदबम.ेसवूसलए मअमतल जीपदह हवमे10ण् ब्ंततपमक कमेपतम जव इम ंिेज25/07/2007:- ब्ींउवउपससं.30 वदम कवेमए चार महिनो के ईलाज के बाद, रोगिणी पूर्ण रूप से ठीक है । ब्ींउवउपससं ने जबर्दस्त कमाल किया । रोगी की दिल्ली यात्रा स्थगित हो गयी एवं ûú वर्षों से ग्रसित बीमारियाँ खत्म हो गयी, साथ ही साथ जो ब्लेज हो गया था, जिसके लिए ऐलोपैथिक डाक्टर के अनुसार आॅपरेशन ही एक मात्रा इलाज है, बिना आॅपरेशन के ही गल गया, आप नया अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट देखिए, जो कि üý.úÿ.üúúझ् को कराया गया है । ।इवअम पिदकपदहे ंतम ूपजी पद छवतउंस सपउपजेण्

लाइफ Saved

बात दिनांक 29.12.06 के शाम के समय का है, मैं अपनी दुसरी युनिट में पूर्व निर्धरित रोगी का केस ले रहा था, तभी मेरे कम्पाउण्डर ने, एक विजिटिंग कार्ड लाकर सामने टेबुल पर रख दिया, मैंने कार्ड हाथ में लिया, मल्टी कलर में छपे कार्ड पर मैंने नाम पढ़ा डा0 विजय प्रकाश, डी0एच0एम0एस0, डी0आई0 होमियो, लंदन, सिर उठाकर कम्पाण्डर की तरपफ प्रश्न सूचक नजरों से देखा, कम्पाउण्डर बोला कि डाक्टर साहब, बनारस से आये हैं, आपसे मिलना चाहते हैं, और होमियोपैथिक माइंड पत्रिका लेना चाहते हैं, मैंने कम्पाण्डर से बोला, आप डाक्टर साहब को चाय-नास्ता कराओ, तब तक मैं केस से Úी हो जाता हूँ । रोगी के चले जाने के बाद डाú विजय प्रकाश मेरे चेम्बर में आये और गर्म-जोशी के साथ हाथ मिलाया, मैंने उन्हें कुर्सी पर बैठाकर, स्वयं बैठ गया । उन्होंने कहना शुरू किया, डाú गुप्ता, आपकी पत्रिका ‘‘गुणों का भण्डार’’ है, मैंने आज से पहले किसी मेडिकल पत्रिका को इतने आनन्द से नहीं पढ़ा, जितना इसको पढ़ा हूँ, आपके केश तो एक-एक गुत्थी सुलझा देते हैं, आपकी लेखन शैली लाजवाब है, पढ़ने पर ऐसा लगता है, जैसे यह केस मेरे सामने ही लिया गया हो, आप अपने रोगी के अन्दर मानो घुस से जाते हैं, और ऐसा लगता है मानों रोगी स्वयं ही ष्डपदक त्नइतपबष् बताने लगता है, पिफर अचानक विषयान्तर होते हुए, मुझसे पुछे, डाú गुप्ता, आपकी फीस क्या है ? मुझे झटका सा लगा कि अचानक डाú साहब कहाँ पहुँच गये, मैंने अपनी अभिव्यक्ति को दबाते हुए जवाब दिया-पाँच सौ रुपया। दवा का दाम अलग से चार्ज करता हूँ । उन्होंने पिफर विषय बदलकर पुछा-डाú गुप्ता, आपकी और भी कोई किताब प्रकाशित है । मैंने जवाब दिया कि एक पुस्तक प्रकाशित हो रही है जिसका नाम ‘‘सहगल मेथड आॅपफ होमियोपैथी’’ है । इतना सुनना था कि बोले मैं भी इसी लाइन से जुड़ा हुआ हूँ और पिछले कई वर्षों से होमियोपैथी की प्रैक्टिस करता हूँ, मेरे पास दस हजार से भी ज्यादा होमियोपैथिक पुस्तकें है मेरी लाइब्रेरी में, मेरे पास से दुसरे-दुसरे डाक्टर, होमियोपैथी की किताबें माँग कर पढ़ने ले जाते हैं । मैंने डपदक पर अब तक प्रकाशित सारे पुस्तके पढ़ी हैं, वर्ष में 7-8 सेमिनारों में भाग लेता हूँ और देश के कई नामी-गिरामी होमियोपैथौ से मेरे पारिवारिक संबंध् है, परन्तु आपकी पत्रिका ने मुझे बहुत प्रभावित किया है, मेरे कई प्रश्नों के उत्तर देश के प्रतिष्ठित चिकित्सक भी नहीं दे सकें, उन सभी का उत्तर आपकी पत्रिका में पाता हूँ, मगर कुछ रूबरिक जो आप लेते है, उनके बारे में मैं अब तक समझ नहीं पाया हूँ, कि आप कैसे उसको प्रैक्टिस में लाते है, क्या मुझे बतायेगें ? मैंने उनके चेहरे की तरपफ देखा, ऐसा लग रहा था, जैसे ज्ञदवूसमकहम का टेस्ट ले रहे हों । मैंने यथोचित ढंग से उनकी जानकारी बढ़ायी, अभी और कुछ रूबरिक के बारे में कहना ही चाहता था कि डाक्टर साहब बोले कि छोड़िये, सर, फर कभी इन पर बात होगी । मैं एक और काम से आपके पास आया हूँ । वो क्या है, मेरी शादी को ûú वर्ष हो गये । लेकिन मेरी पत्नी माँ नहीं बन सकी है, बहुत ईलाज कराया हूँ, एक दवा की फ पावर से लेकर ब्ड तक खा चुका हूँ, परन्तु ैचमतउ ब्वनदज बढ़ता ही नहीं है । मनोचिकित्सक को भी दिखला चुका हूँ, उनका कहना है, कि आप अपने पर अत्यध्कि दबाव रखते हैं, इसी वजह से ैचमतउ ब्वनदज नहीं बढ़ रहा है । मैंने पुछा की सिपर्फ अपना ईलाज ही किये है या दुसरे डाॅक्टर को भी दिखाये हैं । जवाब मिला-ये क्या आप कह रहे हैं ? अगर मैंने अपने को दुसरे डाॅक्टर से दिखाया तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे ? कहेगें कि डाक्टर, तो अपना बीमारी ठीक नहीं कर पा रहा है, दुसरों का क्या ईलाज करेगा ? मैंने पुछा कि-तब आप मुझसे क्यों ये सब कह रहे हैं ? मेरे ईलाज में क्यों आना चाहते हैं ? डाú साहब बोले कि-सर, मैं आपका लेख पढ़ता हूँ, जिसके कारण मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ कि आप अन्यों से बिल्कुल अलग है, जिसका प्रमाण मैंने स्वयं अपनी आँखों से यहाँ आकर देख चूका हूँ, मैं सुबह से ही आपके क्लिनिक के बाहर बैठा आपके मरीजों को देख रहा था, कि किस-किस तरह के गम्भीर रोग का आप ईलाज कर रहे हैं, और कुछ बाकी रहा तो आपसे बात करके निश्चित हो गया हूँ और एक कारण है, आपसे ईलाज कराने का कि मैं बहुत दवा खा चुँका हूँ परन्तु एक प्रतिशत भी पफायदा नजर नहीं आया है, इस बात को मैं जान गया हूँ कि कुछ तो कमी है मुझमें, जिसके कारण मेरा परिवार टूटने के कगार पर खड़ा है, घरवाले दुसरे शादी का दबाव डाल रहे है, मगर मेरी पत्नी बहुत अच्छी है, मगर मैं क्या करूँ । समझ में नहीं आ रहा है। मैं बहुत भीषण संकट में पफंस गया हूँ, अब आप ही कुछ सोच-विचार कर कोई दवा दीजिए, ताकि मैं इस संकट से निकल सँकू । मैंने तीसरा प्रश्न पुछने की जरूरत ही नहीं समझी । उनके लिए मैंने स्लबवचवकपनउ की व्यवस्था की । कुछ महीनों की चिकित्सा के बाद, उनका ैमउमद ज्मेज दुबारा कराया, तो आश्चर्य जनक त्मेनसज आया था, उसका ज्वजंस ब्वनदज .98 उपसपवद हो गया । मैंने पत्नी संसर्ग के लिए सलाह दिया, दुसरे महीने ही उनकी पत्नी गर्भवती है, इस सूचना को पफोन से डा0 विजय प्रकाश ने हजारों ध्न्यवाद के साथ दी । आप दोनों त्मचवतज देखिए इस केस में मैंने रूबरिक बनाया था:-